वांछित मन्त्र चुनें

म॒हाँ अ॑स्यध्व॒रस्य॑ प्रके॒तो न ऋ॒ते त्वद॒मृता॑ मादयन्ते। आ विश्वे॑भिः स॒रथं॑ याहि दे॒वैर्न्य॑ग्ने॒ होता॑ प्रथ॒मः स॑दे॒ह ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahām̐ asy adhvarasya praketo na ṛte tvad amṛtā mādayante | ā viśvebhiḥ sarathaṁ yāhi devair ny agne hotā prathamaḥ sadeha ||

पद पाठ

म॒हान्। अ॒सि॒। अ॒ध्व॒रस्य॑। प्र॒ऽके॒तः। न। ऋ॒ते। त्वत्। अ॒मृताः॑। मा॒द॒य॒न्ते॒। आ। विश्वे॑भिः। स॒रथ॑म्। या॒हि॒। दे॒वैः। नि। अ॒ग्ने॒। होता॑। प्र॒थ॒मः। स॒द॒। इ॒ह ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:11» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्या क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूप जगदीश्वर ! आप (इह) इस जगत् में (विश्वेभिः) सब (देवैः) विद्वानों के साथ (प्रथमः) पहिले (होता) विद्यादि शुभगुणों के दाता हमको (सरथम्) रथ सहित (नि, आ, याहि) निरन्तर प्राप्त हूजिये जिस कारण (त्वत्) आप से (ऋते) भिन्न (अमृताः) नाशरहित जीव (न) नहीं (मादयन्ते) आनन्द करते हैं इससे आप (सद) स्थिर हूजिये आप (अध्वरस्य) सब व्यवहार के (महान्) बड़े (प्रकेतः) उत्तमबुद्धि के प्रकाशक (असि) हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसके विना न विद्या, न सुख प्राप्त होता है, जो विद्वानों का सङ्ग, योगाभ्यास और धर्माचरण से प्राप्त होने योग्य है, उसी जगदीश्वर की सदा उपासना करो ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वमिह विश्वेभिर्देवैः सह प्रथमो होताऽस्मान् सरथं न्यायाहि यतस्त्वदृतेऽमृता न मादयन्ते तस्मात्त्वं सद त्वमध्वरस्य महान् प्रकेतोऽसि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महान्) (असि) (अध्वरस्य) सर्वव्यवहारस्य (प्रकेतः) प्रकृष्टप्रज्ञावान् प्रज्ञापकः (न) निषेधे (ऋते) (त्वत्) (अमृताः) नाशरहिता जीवाः (मादयन्ते) आनन्दयन्ति (आ) (विश्वेभिः) सर्वैः (सरथम्) रमणीयेन स्वरूपेण सह वर्त्तमानम् (याहि) समन्तात्प्राप्नुहि (देवैः) विद्वद्भिः सह (नि) (अग्ने) स्वप्रकाशस्वरूप जगदीश्वर (होता) विद्यादिशुभगुणदाता (प्रथमः) आदिमः (सद) सीद (इह) ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! येन विना न विद्या न सुखं लभ्यते यो विद्वत्सङ्गयोगाभ्यासधर्माचरणैः प्राप्योऽस्ति तमेव जगदीश्वरं सदोपाध्वम् ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याच्याशिवाय विद्या, सुख प्राप्त होत नाही, जो विद्वानांची संगती, योगाभ्यास व धर्माचरण याद्वारे प्राप्त होण्यायोग्य आहे त्याच जगदीश्वराची सदैव उपासना करा. ॥ १ ॥